Sunday, February 17, 2013

1000 साल पुराने इस किले से जुड़ी है रहस्य और रोमांच की अजब कहानी


PHOTOS : 1000 साल पुराने इस किले से जुड़ी है रहस्य और रोमांच की अजब कहानी
इंदौर। ग्यारहवीं शताब्दी में मालवा पर शासन करने वाले परमार राजाओं ने मंदसौर से 165 और भानपुरा से 26 किमी दूर एक अद्भुत किले का निर्माण कराया था। आज यह किला खंडहर में तब्दील हो चुका है, लेकिन इसकी बनावट और शिल्पकारी को देख वैभव के चरमकाल में इसकी बुलंदियों का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। किले में गुप्त और परमार काल की चौथी और पांचवीं शताब्दी की मूर्तियां जहां इसके अद्वितीय मूर्तिशिल्प को दर्शाती हैं, वहीं किले में बने विभिन्न भवन इसके सामरिक महत्व को भी प्रदर्शित करते हैं। इस सबसे बढ़कर किले से रहस्य और रोमांच की एक अलहदा कहानी भी जुड़ी है।
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मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले की भानपुरा तहसील के नावली गांव में पहाड़ी पर बना हुआ है प्राचीन हिंगलाजगढ़ किला। परमार काल में यह किला अपने वैभव के चरम पर था। किले में विभिन्न कालखंडों की प्रस्तर मूर्तिशिल्प कलाकृतियां आज भी मौजूद हैं। हिंगलाजगढ़ किला लगभग 800 वर्षों तक मूर्तिशिल्प कला का केंद्र रहा है। इस किले में मिली मूर्तियां गुप्त और परमार काल की हैं।

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 किले में मिली सबसे पुरानी मूर्तियां तो लगभग 1600 साल पुरानी हैं और चौथी व पांचवीं शताब्दी की मानी जाती हैं। यहां से नंदी और उमा-महेश्वर की प्रतिमाओं को फ्रांस और वाशिंगटन में हुए इंडिया फेस्टीवल में भी भेजा गया था। जहां यह मूर्तियां अंतरराष्ट्रीय मंच पर वाहवाही लूटने में कामयाब रहीं थीं।ीं

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हिंगलाजगढ़ किले का निर्माण ग्यारहवीं शताब्दी में परमार कालिन राजाओं ने किया था। इसके बाद यहां चंद्रावतों का शासन आया तो यह खंडहरों में तब्दील हो गया। कालांतर में होलकर स्टेट का शासन आया तो यशवंतराव होलकर ने इसका पुन निर्माण कराया। देवालयों, मठों एवं रहवासी मकानों के पत्थरों का उपयोग किया और इस किले को छावनी के रूप में इस्तेमाल किया।

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किले में मिले पाली लिपी में लिखे प्राचीन शिलाखंड मिले हैं, जो इस किले के प्राचीन इतिहास के बारे में बताते हैं। इसके अनुसार सैकड़ों वर्ष पहले चित्तौड़ पर शासन करने वाली तक्ष या तक्षक जाति का संबंध मोरी जनजाति से था। परमार इसी मोरी जनजाति के वंशज थे। सियालकोट (वर्तमान में पाकिस्तान में है) पर 515 से 540 के बीच शासन करने वाले हूण साम्राज्य का विनाश कर दिया था। बाद में इन हूणों ने तक्षकों को पराजित कर चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया और यहीं से हिन्दू स्वातंत्र्य पर इस्लाम की तलवार लहराने लगी।

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परमार काल में हिंगलाजगढ़ दुर्ग सामरिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण था और परमारों ने इसे मजबूत बनाने का काम किया। 1281 में हाड़ा शासक हालू ने इस किले पर कब्जा कर लिया और बाद में यह किला चंद्रावत शासकों के अधीन आ गया। 1773 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने लक्ष्मण सिंह चंद्रावत को पराजित कर किले पर आधिपत्य जमा लिया।

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होलकर काल में इस किले की कई इमारतों का नवीनीकरण किया गया, जिसमें हिंगलाज माता मंदिर, राम मंदिर और शिव मंदिर प्रमुख हैं। हालांकि इस किले पर कई राजवंशों ने आधिपत्य जमाया, लेकिन किसी ने भी इसे अपनी स्थायी राजधनी नहीं बनाया। बल्कि इस किले का उपयोग छुपने या अपनी ताकत बढ़ाने की जगह के रूप में अधिक किया।

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हिंगलाजगढ़ दुर्ग का निर्माण सामरिक महत्व के अनुसार किया गया था। इसमें चार पाटनपोल, सूरजपोल, कटरापोल और मंडलेश्वरी पोल के नाम से चार दरवाजे हैं। पहले तीन दरवाजे पूर्वमुखी और मंडलेश्वरी दरवाजा पश्चिम मुखी है। किले में पानी की पूर्ति के लिए सूरजकुंड नामक जलाशय भी बनवाया गया था।

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ऐतिहासिक महत्व के हिंगलाजगढ़ दुर्ग का पुनरुत्थान होगा। पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने हाल ही में इसका सर्वे किया। पुरातत्व विभाग अहमदाबाद से आए कंजरवेशन आर्किटेक्ट आशीष वी. ट्रमादिया, पुरातत्व अधीक्षक अहमदाबाद वी. नायर, पुरातत्वविद् शाश्वत नायडू एवं भानपुरा पुरातत्व संग्रहालय के जे.पी. शर्मा ने हिंगलाजगढ़ किले का सर्वे किया।


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